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Wednesday, September 7, 2016

माता पिता देवो भवः - मनुभाई जैस्वाल, बांद्रा, मुंबई


मां बाप के घर जब बच्चो का जन्म होता है, तो मां बाप ख़ुशी मे मिठाई बाटते है, और वही बडे होकर मां बाप को बाटते है | आज के पडे लिखे आधुनिक समाज के इस युग मे खडे हुए वृद्धा आश्रम भारतीय संस्कृती के सर पर कलंक है | वृद्धा आश्रम कोई सुखद घटना नही, यह दुखद घटना है | यह आशिर्वाद नही पर श्राप रूप है , शोभा रूप नही पर कलंक रूप है | मां-बाप से जुदा रहते बच्चो के घर मे जुता, चप्पल , झाडू रखने के लिये अलग जगह होती है लेकीन मां-बाप के लिये रहने को जगह नही | जो बच्चे मां-बाप को वृद्धा आश्रम मे बोझं समज कर छोड देते है , उन्हे समाज मे आबरू इज्जदार कहलाने का हक नही है | तुम जो तुम्हारे मां-बाप को वृद्धा आश्रम मे धकेलने का अगर सोचोगे भी तो याद रखो भविष्य मे तुम्हारी औलाद भी तुम्हे घर से बेघर करके वृद्धा आश्रम मे छोड देगी | ये मत भुलो ,कि जैसा करोगे वैसा भुग्तोगे |

Picture courtesy: http://www.shutterstock.com

बच्चे जब छोटे होते है तो मां-बाप बोलना सिखाते है , वही बच्चे बडे होकर मां-बाप को चूप रहना सिखाते है | बच्चो के सुख के लिये मर मिटने कि तय्यारी रखने वाले मां-बाप जब कोई बिमारी को लेकर बिस्तर मे दवा-दारू के इलाज के लिये तडपते होते है तब बच्चो को उनके इलाज के लिये न पैसा होता है न समय होता है | समाज मे अपने आप को आबरूदार  बताने के लिये मंदिर-मस्जिद मे जाकर चंदा लिख्वाते है , असल मे ऐसे बच्चे समाज के लिये कलंक होते है | बचपन से लेकर जवानी तक जिसने तुम्हे पाल पोस्कर बडा किया , बडे होकर तुमने उनका दिल जालाया तो समझो तुम्हारा कर्म हि तुम्हारा भाग्य जलायेगा | श्री राजा दशरथ के जमाने मे श्रवण ने मां-बाप को अपने कर्तव्य के पलने मे बिठाकर तीर्थ यात्रा करवाई थी और तुम बडे होकर मौत कि यात्रा करवाते हो |

तुम्हारे वृद्ध मां-बाप दया पात्र नही ,भक्ती पात्र है | जब तुम्हारे चार-पाच साल का बच्चा तुम्हारा प्रेम चाहता है तो क्या सत्तर या अससी साल के तुम्हारे मां-बाप तुम्हारा प्रेम नही चाहेंगे ? | जरा सोचो, समाज मे जगह-जगह व्यसनमुक्ती व अन्य प्रकार  के शिबीर आयोजन होते है लेकीन मां-बाप के रून(उपकार) मुक्ती के लिये शिबीर क्यू नही लगते ? क्युकी मां-बाप के इस कर्ज का बदला चुकाने के लिये दुनिया कि किसी भी औलाद के बस कि बात नही | जब तुम्हारे पेट मे दर्द होता है तो दर्द को तुम ९ मिनट सह नही सकते और तुम्हारी मां हस्ते हुए ९ महिने का दर्द सहती है | दुख-दर्द मे रोते हुए मां-बाप को एक कोने मे चूप होकर पडे रहो कि सलाह देते हो और मरने के बाद उनकी तस्वीर कि पूजा करते हो | कैसा दुर्भाग्य है हमारे समाज का और कैसी है ये तस्वीर , बच्चो को इन्सान बनाने मे मां-बाप को २० साल लगते है और बच्चो को उन्हे मूर्ख बनाने मे २० मिनट भी नही लगते |

मां-बाप जीवन मे २ बार रोते है जब पहली बार उनकी लडकी शादी करके घर छोडती है और दुसरी बार जब लडका मां-बाप को छोडता है | अपने कर्तव्य के रास्तो को भुले हुए बच्चो को मेरा यह संदेश है , भूतकाल कि भुलो को आज से भूल जाओ, नवे भविष्य का निर्मान करो | माता-पिता कि सेवा एव मान सम्मान करो ,उन्हे तुम्हारा प्रेम दो फिर देखो जमाने का सारा सुख तुम्हारे कदम चुमता है या नही |

  प्रार्थना : हे प्रभू आज जो तुने  मेरे जीवन मे बुरे संजोग  खडे किया है वह मेरे कल्यान के लिये है , तेरे प्रती ऐसी मेरी श्रद्धा अखंड रहे |        

 

 

As posted by his Son Ravi Jaiswalravijaiswal142@gmail.com                                

4 comments:

Anonymous said...
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Manish Batra said...

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